ऑटो चालक अशोक कथित तौर पर अपना वाहन अमेरिकी वाणिज्य दूतावास के बाहर पार्क करता है
और यात्रियों को सामान रखने की सेवाएं प्रदान करता है।
सोचिए, न तो कोई स्टार्टअप, न MBA, न कोई ऐप — फिर भी एक शख्स मुंबई में ₹5 लाख प्रति महीना कमा रहा है। और ये कमाई किसी हाई-टेक जॉब या इंस्टा रील्स से नहीं, बल्कि सिर्फ बैग रखने की सर्विस से हो रही है।
बिना स्टार्टअप, बिना MBA — एक ऑटो वाला कमा रहा है ₹5 लाख महीना, जानिए कैसे! यह सिर्फ एक हैरान करने वाली हेडलाइन नहीं है, बल्कि एक ऐसी सच्ची कहानी है जो स्टार्टअप और जमीनी उद्यमिता की परिभाषा को ही बदल देती है।
आइए जानते हैं पूरा मामला:
मुंबई में अमेरिका का वाणिज्य दूतावास यानी यूएस काउंसलेट है, जहां हर दिन हजारों लोग वीज़ा इंटरव्यू देने आते हैं। बिना स्टार्टअप, बिना MBA — एक ऑटो वाला कमा रहा है ₹5 लाख महीना, जानिए कैसे, अब ये लोग दूर-दूर से आते हैं, तो जाहिर है अपना सामान, बैग वगैरह भी साथ लाते हैं। लेकिन दूतावास के अंदर बैग ले जाना सख्त मना है। न कोई लॉकर, न कोई व्यवस्था।
अब सोचिए, इंटरव्यू का समय पास आ रहा है और सिक्योरिटी कह दे कि बैग अंदर नहीं ले जा सकते। ऐसे में बंदा करेगा क्या ?
यहीं से शुरू होती है उस ऑटो वाले की कमाई की कहानी।

काउंसलेट के बाहर एक साधारण सा ऑटो वाला खड़ा रहता है। न कोई स्टार्टअप, न fancy branding — बस सीधा समाधान। वो लोगों को इशारा करता है, “सर, बैग दे दीजिए, सुरक्षित रखूंगा। रोज का काम है। सिर्फ ₹1000 लगेंगे।”
₹1000 बैग रखने के लिए?
पहली बार में अजीब लगेगा। लेकिन जब सामने वीजा इंटरव्यू हो और बैग की वजह से एंट्री रुक रही हो — लोग बिना सोचे पैसे दे देते हैं।अगर आपको ये कहानी इंस्पायरिंग लगी हो तो इसे जरूर शेयर करें, और कमेंट में बताइए — क्या आपने अपने आसपास भी कभी कोई ऐसा क्रिएटिव बिज़नेस मॉडल देखा है?
चलिए अब करते हैं इसकी कमाई का कैलकुलेशन:
हर दिन लगभग 20–30 लोग इस ऑटो वाले को अपना बैग दे जाते हैं। यानी रोज की कमाई होती है ₹20,000 से ₹30,000 तक। और महीने में ये बनती है करीब ₹5 लाख रुपए तक!
न कोई गलत काम, न धोखा। सिर्फ एक समस्या को समझा और बना दिया समाधान।
अब आपके मन में सवाल होगा कि एक ऑटो में इतने बैग कहां रखे जाते होंगे?
तो जनाब, बंदे ने यहां भी अपना दिमाग लगाया। एक लोकल पुलिसवाले से मिलकर लॉकर सर्विस शुरू की, जहां बैग सुरक्षित तरीके से रखे जाते हैं। ऑटो सिर्फ लोगों का ध्यान खींचने के लिए है, असल कमाई लॉकर सर्विस से हो रही है।
यह Story Lenskart के प्रोडक्ट लीडर राहुल रूनी ने LinkedIn पर शेयर किया था।
राहुल खुद वीजा इंटरव्यू के लिए गए थे। सिक्योरिटी ने अंदर जाने से मना कर दिया क्योंकि उनके पास बैग था। तभी एक ऑटो वाला सामने आया और कहा, “बैग दे दीजिए, मैं संभाल लूंगा।”
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, लिंक्डइन पोस्ट के माध्यम से ड्राइवर के अभिनव सेटअप ने व्यापक ध्यान आकर्षित किया,
जिसके बाद न केवल प्रशंसा हुई बल्कि जांच भी हुई। यह पहचान लेंसकार्ट के एक उत्पाद नेता राहुल रूपानी से मिली,
जिन्होंने ऑटोड्राइवर की 20 से 30 ग्राहकों की सेवा करने की दैनिक दिनचर्या पर प्रकाश डाला,
जिससे प्रतिदिन 20,000 से 30,000 रुपये की प्रभावशाली कमाई हुई। रूपानी ने उनके स्ट्रीट-स्मार्ट बिजनेस मॉडल की सराहना की
और कहा कि उनकी मासिक आय कॉर्पोरेट दुनिया के अनुभवी पेशेवरों के बराबर है
भले ही उनके पास औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण या तकनीकी बुनियादी ढांचे की कमी हो।
न MBA, न फंडिंग, न स्टार्टअप की बड़ी बातें। यह थी असली जमीनी उद्यमिता।
असल उद्यमिता का मतलब सिर्फ करोड़ों की फंडिंग या कोई यूनिक ऐप आइडिया नहीं होता। कभी-कभी बस किसी की परेशानी को समझकर उसका हल निकालना ही बड़ा बिज़नेस बन जाता है।
और यही किया उस ऑटो वाले ने — समस्या को समझा, समाधान बनाया और उसे ही अपनी कमाई का जरिया बना लिया।
अगली बार जब आप किसी प्रॉब्लम को देखें…

तो सिर्फ शिकायत मत करिए, क्योंकि हो सकता है उसी परेशानी में छुपा हो आपका अगला बड़ा मौका।
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